जो दिख रहा वो सच नही
फिर अनदिखे को क्या कहिये
हस रहे जख्म महफिलो में
गुमसुम खुशी को क्या कहिये
हर किसी ने हर किसी की
किस्मतों पर रश्क खाया
फिर भी आसूं हर आँख में
तो नजरिये को क्या कहिये
दिल लगाया इसलिए कि
दिल को तो कुछ सुकून हो
दिल लगा सूकूं काफुर हुआ
तो दिल्लगी को क्या कहिये
कुछ कर गुजरने की चाहत
जगी तो वो नेता बन गए
कुछ छोड, कर गुजरे वो सब
तो दिल्ली को क्या कहिये
जीते जी वो मर गए जो
हो गये जिंदगी से खफा
जिन्दगी फिर भी न रूठी
तो जिंदगी को क्या कहिये
जिंदगी एक सी कभी नहीं रहती ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-05-2017) को
जवाब देंहटाएं"लजाती भोर" (चर्चा अंक-2631)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक