बडा हसीं था वो एक
मजंर
कि कोई नजरों में बस
रहा था
हमारी खातिर ही तुम
बने थे
ये जर्रा जर्रा भी
कह रहा था…………………………..
बडी अनोखी सी बात है
ये
बडा ही मुश्किल है
ये फसाना
कि जिससे हमने बनायी
दूरी
वो मेरी धडकन में बस
रहा था
हमारी खातिर ही तुम बने थे
ये जर्रा जर्रा भी कह रहा था…………………………..
वो कपकपाती सी सर्द
रातें
वो तेरा ख्वाबों में
आ के जाना
कि जिससे हमने नजर
चुरायी
वो मेरी नजरों में
बस रहा था
हमारी खातिर ही तुम बने थे
ये जर्रा जर्रा भी कह रहा था…………………………..
खुदाया तेरी है रहमते
ये
तेरा करम जो हुआ है
मुझ पर
कि जिसको हमने दुआ
में मांगा
वो मेरे दिल में ही
बस रहा था
हमारी खातिर ही तुम बने थे
ये जर्रा जर्रा भी कह रहा था…………………………..
बडा हसीं था वो एक मजंर
कि कोई नजरों में बस रहा था
हमारी खातिर ही तुम बने थे
ये जर्रा जर्रा भी कह रहा था…………………………..
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरूवार (01-06-2017) को
जवाब देंहटाएं"देखो मेरा पागलपन" (चर्चा अंक-2637)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंप्रभावी भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंगज़ब !!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
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