ऐ मोहब्बत किन लफ्जों में, मै करू तुझको
बयां
दिल लगाके देखले खुद, हाल हो जाता है
क्या
दिन के जैसे जागता हूँ, अब तो मै रातभर
खूबसूरत हो गया हैं जिन्दगी का ये सफर
सोचकर ही दिल में छा जाता खुशियों का समां
दिल लगाके देखले खुद, हाल हो जाता है
क्या
हुस्न की मूरत नही पर सारी दुनिया से
जुदा
देखते ही दिल दीवाना हो गया उस पर फिदा
कलियों सी मासूम हमदम बस लुटाती है वफा
दिल लगाके देखले खुद, हाल हो जाता है
क्या
जिक्र उसका हर घडी हर बात में मैं करता
हूँ
जाने उसकी धडकनों में किस तरह मैं रहता
हूँ
प्यार की खुशबू से महकी मेरी शामें मेरी
सबा
दिल लगाके देखले खुद, हाल हो जाता है
क्या
ऐ मोहब्बत किन लफ्जों में, मै करू तुझको
बयां
दिल लगाके देखले खुद, हाल हो जाता है
क्या
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-09-2017) को "आदमी की औकात" (चर्चा अंक 2717) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब शानदार और जानदार ग़ज़ल है
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