हमसाया भाग १
हमसाया भाग २
गतांक से आगे
सारी
रात तरह तरह के खयालों सपनों में खोते मेरी रात बीती। कब मुझे नींद आयी ये मुझे भी
नही पता, मगर नींद थी इतनी गहरी कि मै ये भी भूल गया कि मै घर पर नही ट्रेन में हूँ,
ट्रेन पुने स्टेशन आ चुकी थी और राधिका मुझे आवाज दे रही थी।
हडबडा
कर मैं उठा और फटाफट सामान उतारने लगा तो धीरे से राधिका बोली- आप परेशान न हो, ये
आखिरी स्टेशन है, नींद से अचानक से उठने के कारण शायद मै अपने सपनों से वास्तविक दुनिया
में पूरी से वापस नही आ पाया था।
सामान
उठाने के दौरान अहसास हुआ कि माँ बाबू जी ने कितना सारा सामान बाँध दिया था, कुली को
आवाज देने ही वाला था कि विजय मामा अपने लडके यश के साथ आते दिखे।
विजय
मामा हमारी छोटी चाची के सबसे छोटे भाई है। पिछले दस बारह साल से पूने आकर रहने लगे
हैं, उनके तीन लडके और दो लडकियाँ है, यश उनका मंझला बेटा है । मुझसे दो चार साल की
ही छोटाई या बडाई होगी। हाँ अगर माँ से पूछता तो वो तो उसका जनम साल क्या दिन तिथि
तक सब बता देती। जाने कैसे माँ को सभी के जनम शादी मरण सबकी दिन तिथि याद रहती है।
फला सन ७२ में चढते पूस की चतुर्दशी को हुआ था, या फला की शादी सन ७० में उतरते जेठ
की एकादशी को थी। मुझे तो अपने तीनो भाइयों की बर्थ डेट और माँ बाबू जी की शादी की सालगिरह के अलावा आज तक कोई तारीख याद नही रह पायी । मगर हाँ
अब दो और तारीखे याद रखनी होंगी- राधिका का जनमदिन और अपनी शादी की तारीख, सुना है
अगर ये दोनो तारीखे अगर कोई शादीशुदा आदमी भूल जाय तो अक्सर ये लडाई झगडे का मुद्दा तक बन जाता है। सो लडाई से बेहतर है कि मै दो और तारीखे ही याद कर लूं।
अब
तक मामा जी पास आ चुके थे आते ही बोले- अरे आनन्द बेटा, ज्यादा देर तो नही हुयी, दरअसल
सुबह ही जीजा जी का फोन आया था कि तुम आ रहे हो, निकल तो मै तुरन्त ही पडा था मगर रास्ते
में पेट्रोल भराने में जरा देर लग गयी।
मै
झुक कर मामा जी के पैर छूने लगा तो उन्होने हाथ रोक लिया- बोले अरे अरे ये क्या तुम
तो मेरे मान्य हो, भला मान्यों से भी कही पैर छुआये जाते हैं। इसी बीच राधिका झुक कर
मामा जी के पैर छुते हुये बोली- मामा जी आशीर्वाद दीजिये कि हम लोग सुखी रहे।राधिका
की बात में इतना अपनापन था कि जैसे मेरे नही वो उसके ही सगे मामा हो। शायद राधिका के
इसी स्नेहभाव के कारण मामा जी उसको नही रोक सके और उसके सिर पर हाथ रखते हुये बोले-
बेटा तुम दोनो खूब सुखी रहो। फिर मेरी तरफ देख कर बोले- आनन्द बहुत भाग्यवान हो जो
तुम्हे ऐसी गुणवती दुल्हन मिली है, फिर यश की तरफ देखते हुये बोले- यश बेटा भैया भाभी के पैर छुओ। उनकी इस बात ने यह तय कर
दिया कि यश उमर में कुछ तो छोटा जरूर है । खैर इस सदाचार के बीच ही यश ने हमे याद दिलाया
कि हम लोग प्लेटफार्म पर है और हमे घर भी चलना चाहिये। यश की इस बात पर मामा जी खूब
जोर से हंस पडे और बोले हाँ हाँ चलो सामान उठाओ, आओ बहू चलो घर चले, फिर यश के साथ गाडी
में सामान रखवा हम चारो मामा जी के साथ घर की तरफ चल दिये।
क्रमशः
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14-09-17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2727 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद