गतांक १ से आगे..........
सच
कहूं तो अभी तक ठीक से राधिका को देखा भी नही था, इस बात का पता तब चला जब ट्रेन गाँव
से बीस तीस किलोमीटर दूर निकल आने पर मैने कहा- चाहो तो ये घूंघट कम या हटा सकती हो,
गाँव से हम लोग बहुत दूर निकल आये हैं, दरअसल मुझे राधिका का ख्याल आने लगा हो ऐसा नही
था, बल्कि मुझे इस बात पर शर्म सी आ रही थी कि पूरे डिब्बे में केवल राधिका ही थी जो
लम्बे से घूंघट में थी, बाकी औरते सामान्य रूप से या तो सिर पर थोडा पल्लू रखे थी य
वो भी नही के बराबर था। मगर हाँ जब राधिका का चेहरा दिखा तो मै उसके चहरे से अपनी नजर
फेरना भूल सा गया, वो तो चाय वाले की आवाज पर बगल में बैठे अंकल टाइप व्वक्ति नें कहा-
बेटा जरा चाय तो पकडा दो, ऐसा लगा जैसे मै किसी दूसरी ही दुनिया में चला गया था, मगर
राधिका इस पूरे प्रकरण से बेखबर अपनी चूडियों में उलझी हुयी थी।
राधिका
सच में रूप में हजारो नही लाखों में एक थी, ये मेरा ही मानना नही था, डिब्बे में बैठे
लोगो की निगाहें कह रही थीं। सहसा मुझे लगा जैसे उसने घूंघट हटा कर ठीक नही किया। भली
भाँति जानता था कि मैने ही उसे ऐसा करने को कहा था फिर भी अनावश्यक रूप से मुझे राधिका
पर गुस्सा आने लगा। मै सोचने लगा कि मैने घूंघट उससे घूंघट कम करने या हटाने को कहा
था, वो कम भी तो कर सकती थी, मगर उसने तो पूरी तरह से हटा ही दिया। क्या उसको समझ नही
आ रहा कि गिद्ध जैसी नजरें उसे देख रहीं हैं। क्या इतनी नासमझ है, पिता जी ने बहुत
तारीफ की थी इसकी समझदारी की।
मुझे
खुद समझ नही आ रहा था कि मेरे मन में ये क्रोध क्यो आ रहा था, जिस लडकी से मेरा विवाह
मेरी मर्जी के खिलाफ हुआ क्यो मुझे उससे ये अपेक्षा हो रही है वो मेरी भावनाओं का ख्याल
रखे।
तभी
जाने क्या हुआ- राधिका नें फिर से घूंघट कर लिया, हाँ पहले की अपेक्षा चेहरा पूरा ढका
नही था, अब तक कई लोकल स्टेशन गुजर चुके थे, सो लोकल भीड का चढना उतरना भी कम हो गया
था।
मेरे
मन नें फिर से नयी करवट लेना शुरु किया- राधिका को देखने को मन व्याकुल होने लगा। और
एक बार फिर उस पर गुस्सा आने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे वो मुझसे बदला ले रही हो, कि
इतने दिन घर पर रह कर जिससे बात करना तो दूर एक नजर उठा कर देखा भी नही, तो अब उसे
मै भी देखने का कोई अधिकार नही दूंगी। बडा अजीब सा सफर था, हमसफर थे, मगर अनजाने से
सहयात्री से भी ज्यादा।
उसी
घूंघट की ओट में रहते हुये राधिका नें रात का खाना खाया, और सो गयी और तरह तरह के ख्यालों और सपनों में गोते खाते मेरी रात बीती।
क्रमशः .............
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-09-2017) को "चमन का सिंगार करना चाहिए" (चर्चा अंक 2723) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Bhot hi Sundar ji... Good MORNING
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