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बुधवार, 1 दिसंबर 2010

बन्धन सांसों का

सावन की पूरनमासी का दिन है । बाहर बरिश हो रही है , बच्चे खेल रहे है । आज के दिन बहने अपने मायके जाती हैं या भाई बहनों की ससुराल आते है । मगर कमली के लिये आज का दिन किसी आम दिन जैसा भी नही था ।  उसके लिये भी सावन है लेकिन आसुओं की बारिश के सामने मौसम की बारिश का अस्तित्व नगण्य सा प्रतीत हो रहा है ।पिछले पाँच साल में शायद ही कोई ऐसा मंदिर बचा था जहाँ उसने ईश्वर से एक औलाद के लिये मन्नत ना मांगी थी । लकिन आज वो अपनी इस दुआ के लिये पछता रही थी । जैसे ही उसने अपनी सास को यह खुशखबरी दी , उसकी सास ने फरमान सुना दिया - बहुरिआ ई घर मा बिटिया ना अइहै ।  उसे अस्पताल जाना है  मगर वो डर रही है । बस बार बार वो यही प्रार्थना कर रही है कि बेटी ना हो , क्योकि वो उसको बचा पाने में सक्षम नही है ।
थोडी देर मे जब वो अस्पताल पहुँची तो जाँच करने के बाद डाक्टर साहिबा ने बताया कि वो दो बच्चो को जन्म देने वाली है - एक बेटा और एक बेटी ।
ईश्वर ने शायद उसकी फरियाद सुन ली थी । और अब उसे क्या करना है यह उसने तय कर लिया । घर आकर उसने अपनी सास से कहा - अम्मा  ई घर मा एक नाही दुई बच्चा आये वाले है - एक बेटवा और एक बिटिआ । औ हम बेटवा का तबही जनम दैबे जब बिटिया भी जनम लेहे । औ जउन दिना तुम बिटिया का मारै की बात करिहो हम तोहार पोता का मार डारब ।
वो जानती थी कि दादी के प्रान पोते में बसे है और बेटे में बेटी के और बेटी में उसके ।

23 टिप्‍पणियां:

  1. उफ़ , कन्या भ्रूण की हत्या एक सामाजिक अपराध लेकिन बखूबी जारी. मर्मस्पर्शी कथा . कनपुरिया उच्चारण में संवाद प्रभावी है .

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  2. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति . इस लघुकथा के माध्यम से आपने अच्छा सन्देश और शिख डी है.

    .

    .

    उपेन्द्र

    सृजन - शिखर www.srijanshikhar.blogspot.com पर ( राजीव दीक्षित जी का जाना )

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  3. आदरणीय अपर्णा जी
    नमस्कार !
    भ्रूण की हत्या सामाजिक अपराध है
    लघुकथा के माध्यम से आपने अच्छा सन्देश

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  4. मर्मस्पर्शी कथा अच्छा सन्देश

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  5. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (2/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  6. चाहे कथा काल्पनिक हो अथवा सत्य ,सन्देश बिलकुल ठीक दिया है.यदि सभी लोग ऐसा ही ठोस निर्णय लें तो सामजिक असंतुलन भी ठीक हो जाये.

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  7. बहुत ही मार्मिक..भगवान् का शुक्र था कि जुड़वां बच्चे थे... वरना आगे का सोच के ही दिल दहल जाता है...
    वैसे अब तस्वीर धीरे धीरे बदल रही है..उम्मीद है हम एक अच्छे भविष्य कि तरफ बढ़ेंगे...

    मुट्ठी भर आसमान...

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  8. सुन्दर कथा। यही बड़े सन्दर्भों में देखें तो भी बेटों के होने के लिये बेटियों का भी होना आवश्यक है।

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  9. सार्थक और अच्छा संदेश देती बात। यह सोच जरूरी है। भ्रूण हत्या पाप है....

    http://veenakesur.blogspot.com/

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  10. अच्छी लघु कथा ..लेकिन यदि केवल एक ही बच्चा होता और वो भी बेटी ..तब क्या होता ?

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  11. बाल-बाल बचे!
    सार्थक सन्देश!
    आशीष
    ---
    नौकरी इज़ नौकरी!

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  12. बहू के शब्दों ने दिल दहला दिया...
    यह कहने से पहले उसने खुद को कितना मजबूत किया होगा ...
    समय बल रहा है ...लोंग भी ..
    अच्छी प्रस्तुति !

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  13. भैया को दीनो महला दूमहला हमका दियो परदेश
    स्त्री मुक्ति आन्दोलन कारी इस बाबत कुछ कार्य करेगे या मीटिंग जारी रहेगी और अगली मीटिंग के लिए मीटिंग समाप्ति चाय पानी लजीज खाना
    नारी मुक्ति जिंदाबाद.

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  14. लघु कथा ने समाज में व्याप्त कन्या भ्रूण हत्या की समस्या को बड़े ही प्रभावी ढंग से मुखरित किया है !
    धन्यवाद !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  15. लघु कथा ने समाज में व्याप्त कन्या भ्रूण हत्या की समस्या को बड़ी ही प्रभावी ढंग से मुखरित किया है !
    धन्यवाद !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  16. आज भी लडकियों की भ्रूण हत्या हमारे समाज को कैंसर की बीमारी की तरह तेजी से ग्रसित कर रही है.
    इस मानसिकता को बदलना बहुत ही आवश्यक है,वर्ना हम बेटी के निस्वार्थ प्रेम से सदैव को वंचित हो जायेंगे. बहुत मार्मिक प्रस्तुति..बधाई

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  17. Kahani achanak aa kar tham gayi...
    Aisa laga koyi bura sapana dekh rahe the ki.. Thank god nind toot gayi.

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