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मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

अब तो प्रियतम आ जाओ













रजनीगंधा खिली हुयी है
अब तो प्रियतम आ जाओ
चंदा भी सोने को है
अब तो प्रियतम आ जाओ.........

नील गगन के आँचल में
मस्त पवन की खुशबू ने
मिलकर पुष्प लताओं से
राग प्रीत का छेडा है
अब तो प्रियतम आ जाओ............

जुगुनु चमक रहे राहों में
भर लो आ कर बाहों में
बसा लो मेघ से लोचन में
जुदाई का डर सता रहा है
अब तो प्रियतम आ जाओ..............


हर एक पल अब शूल हुआ
मौसम भी प्रतिकूल हुआ
नश्तर सा हर फूल हुआ
सूरज भी आने को है
अब तो प्रियतम आ जाओ ...............

37 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह...
    इसका तो गाना बन जायेगा...गाया भी जा सकता है...
    बहुत खूब, अब तो आप फिल्मों में ट्राई कर ही लें...
    बहुत सुन्दर कविता....

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  2. वाह, क्या बात है!
    अच्छी कविता है .

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  3. सुंदर रचना इस प्यार भरी गुहार को सुनकर प्रियतम अवश्य आयेंगे .........

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  4. पांच लाख से भी जियादा लोग फायदा उठा चुके हैं
    प्यारे मालिक के ये दो नाम हैं जो कोई भी इनको सच्चे दिल से 100 बार पढेगा।
    मालिक उसको हर परेशानी से छुटकारा देगा और अपना सच्चा रास्ता
    दिखा कर रहेगा। वो दो नाम यह हैं।
    या हादी
    (ऐ सच्चा रास्ता दिखाने वाले)

    या रहीम
    (ऐ हर परेशानी में दया करने वाले)

    आइये हमारे ब्लॉग पर और पढ़िए एक छोटी सी पुस्तक
    {आप की अमानत आपकी सेवा में}
    इस पुस्तक को पढ़ कर
    पांच लाख से भी जियादा लोग
    फायदा उठा चुके हैं ब्लॉग का पता है aapkiamanat.blogspotcom

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  5. अहा, आनन्द आ गया। बहुत दिन हुये इतनी सरल और सघन कविता पढ़े।

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  6. @Thakur M.Islam Vinay
    ये नीम हकीमो वाली दूकान किसी फुटपाथ या नुक्कड़ पर खोल कर बैठ जाओ तो शायद कुछ लोगो को बेवकूफ बना भी लो. यहाँ पर आप की स्कैनिंग हो चुकी है . मेरे ब्लॉग पर फिर कभी ऐसे कमेन्ट न करना जो रचना से सम्बंधित ना हो , यह स्थान विज्ञापन के लिए नहीं है . यदि और कोई बात कहनी हो तो मै एक पता दे रही हूँ वह पर जा कर लिखो शायद अकल आ जाये.
    pachhuapawan.blogspot.com
    एक बार अवश्य मिले इनसे
    धन्यवाद

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  7. रात का चाँद क्या है , चांदनी आसमान क्या है , गेशुवो के फूल क्या कहते ,जो होती भूल क्या है ,

    पहेली पहेली ही रही ,रजनी गंधा महकती ही रही ,मन में बसी छबि कहती रही ....वो आयेंगे .........

    जवाब देंहटाएं
  8. रात का चाँद क्या है , चांदनी आसमान क्या है , गेशुवो के फूल क्या कहते ,जो होती भूल क्या है ,

    पहेली पहेली ही रही ,रजनी गंधा महकती ही रही ,मन में बसी छबि कहती रही ....वो आयेंगे .........

    जवाब देंहटाएं
  9. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (16/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  10. शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।

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  11. अपर्णा जी...... बहुत ही प्यारे एहसाह भरे है इस गीत ग़ज़

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  12. अपर्णा जी...... बहुत ही प्यारे एहसाह भरे है इस गीत में... सुंदर प्रस्तुति .

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  13. हर एक पल अब शूल हुआ
    मौसम कुछ प्रतिकूल हुआ
    नश्तर सा हर फूल हुआ

    बहुत सुन्दर और सरल कविता!

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  14. वन्दना जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर लाने के लिये आपका शुक्रिया ।

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  15. आज के भेड़ चाल में ऐसी ही निर्दोष और सरल मन से निकली रचनाओं से शायद इंसान रोबोट बनने से रुक सकता है
    आगे भी ऐसी ही रचनाये पढने को मिले
    ठाकुर इसलाम को सही पता दिया है...........

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  16. हर एक पल अब शूल हुआ
    मौसम कुछ प्रतिकूल हुआ
    नश्तर सा हर फूल हुआ
    सूरज भी आने को है
    अब तो प्रियतम आ जाओ .
    --
    बहुत ही बेहतरीन रचना है!

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  17. बहुत खुब प्रस्तुति.........मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित...आज की रचना "प्रभु तुमको तो आकर" साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद

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  18. दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती!

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  19. एक सुझाव है..

    हर एक पल अब शूल हुआ
    मौसम कुछ प्रतिकूल हुआ


    यहाँ

    हर एक पल अब शूल हुआ

    मौसम "भी" प्रतिकूल हुआ ..लिखेंगे तो मुझे लगता है बातों का वजन और बढ़ जायेगा...

    'कुछ' से शूल उतना तीक्षण नहीं लग रहा...

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  20. आपका ब्लाग "पलाश" का प्रयास अच्छा है मैं आपके ब्लाग को फालो कर रहा हूँ ।

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  21. रंजना जी हमे बेहद खुशी है कि आपने अपना सुझाव दिया । हम आपके सुझाव का सम्मान करते हैं ।

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  22. हर एक पल अब शूल हुआ
    मौसम भी प्रतिकूल हुआ
    नश्तर सा हर फूल हुआ
    सूरज भी आने को है
    अब तो प्रियतम आ जाओ

    खूबसूरत भावपूर्ण गीत जो अपने प्रवाह में बहा लेजाता है..

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  23. कविता तो कविता , उस पर रंजना जी का सुझाव , दोनों से गुजरना अच्छा रहा ! आपका सुझावों को सकारात्मक तौर पर लेना और भी महत्वपूर्ण है !

    @ जुगुनु चमक रहे राहों में
    भर लो आ कर के बाहों में
    हमे छुपा ले निगाहो में
    जुदाई का डर सता रहा है
    अब तो प्रियतम आ जाओ..............

    --- 'हमे छुपा ले निगाहो में' - यह पंक्ति लय प्रक्रिया में बैठ नहीं रही है , शायद , आप कुछ बार पढ़ कर महसूस कीजिये , या हो सकता है मैं ही गलत होऊं ! पर मुझे खटका ! और यह भी कि 'भर लो' की शैली एकाएक 'छुपा ले' के विधान को कैसे आत्मसात कर सकेगी ??

    अउर
    अपनी भाखा मा यक रचना तुम्हरे पढ़े जाय के इंतिजार मा है . वही बिलाग पै . कविता ज्योत्स्ना जी लिखिन हैं , प्यारी कविता है , आपन राय-सुझाव दिहिउ , इंतिजार रहे ! सादर !

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  24. aap ki kavita ne kahi dil ki gahrahio tak ek akale insaan ke dard ko bayan kia hi aap mahan ho!

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  25. क्या गीत लिखा है दी !! इतना सहज, इतना सरल, इतना मासूम जैसे कि प्यार ने स्वयं को गीत में ढाल लिया हो !! इससे बेहतरीन प्रेमाभिव्यक्ति शायद ही संभव हो !! कृष्ण की बांसुरी सा मीठा है ये गीत !!

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