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शनिवार, 11 दिसंबर 2010

वो कहता था ...........












वो कहता था
वो कभी झूठ नही बोलता
किसी को धोखा नही देता
वादे निभाना है उसकी आदत
इश्क को मानता है इबादत

वो कहता था
मेरा इन्तजार करना
मुझपे ऐतबार करना
मै बसता हूँ तेरे दिल में
मुझे कभी बेघर ना करना

वो कहता था
मै चाहे कही भी जाऊँ
कितना भी दूर रहूँ
पर आऊँगा लौट कर
ना जाना मुझे छोड कर

आज भी मै कर रही हूँ
उसका इन्तजार
क्योकि उसने किया था
मुझपे ऐतबार

नही बसाया है किसी को
अपने दिल में
क्योकि नही कर सकती
उसको बेघर

खडी हूँ आज भी
मै उसी मोड पर
बरसो पहले जहाँ
गया था छोड कर
जाने किस पल
वो आ जाय
मुझे ना पाकर
कही घबरा ना जाय

बस चाहती हूँ
एक बार सिर्फ एक बार
आ जाय मेरे पास
कह दे एक बार
तुम क्या चाहती हो

क्योकि हमेशा
वो कहता रहा
बस कहता रहा
और मै सुनती रही

कह ना सकी कभी
मन की बात
वरना आज
वो भी कही
किसी से कहता
वो कहती थी …………..




24 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर लिखा है अपर्णा जी.....

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  2. सुंदर कविता, कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति।

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  3. अपने साथ तो मामला उलट गया... लेकिन खलिश अभी भी बाकी है. और इस पर श्रीमती जी कभी कभी छेड़ भी देती हैं...

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना ,
    कई पुरानी यादें ताजा होगई
    हमें आगे बढ़ना ही पड़ता है . अपने लिए न सही पर अपनों के लिए .
    हम जो चाहते है वही नही मिलता और जो पास है उस के दूर होने तक उस के पास होने का अहसास कितना सुखद था पता नही चलता
    कितना अजीब है पर शायद यही जीवन है

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  5. मनोज जी वो कहता था को रविवासरीय चर्चा मे शामिल करने क शुक्रिया ।

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  6. वो कहती थी अच्छी रचना
    इस बार मेरे ब्लॉग में SMS की दुनिया ............

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  7. बहुत खूबसूरती से एहसास पिरोये हैं ...

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  8. अपर्णा जी आपको पढ़ना सदैव रुचिकर होता है| परन्तु कहना होगा ये कविता आपकी अन्य कविताओं से ज़्यादा दिल के करीब लगी| आम आदमी की बात, उस के ही लहजे में, उसी की भाषा में - सीधे और सपाट ढँग से कह दी आपने इस कविता के माध्यम से| बहुत बहुत बधाई|

    स्त्री मन की कोमलता ने एक बार फिर प्रभावित किया:-
    जाने किस पल
    वो आ जाय
    मुझे ना पाकर
    कही घबरा ना जाय.............

    और साथ ही वही स्त्री मन, बेहिचक बिना लाग लपेट के अपना संदेश देने में कामयाब भी दिखा है इस कविता में:-
    कह ना सकी कभी
    मन की बात
    वरना आज
    वो भी कही
    किसी से कहता
    वो कहती थी …………..

    एक बार फिर से बधाई स्वीकार करें|

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  9. प्रेमानुभूति पर सुन्दर अभिव्यक्ति.

    आज भी मै कर रही हूँ
    उसका इन्तजार
    क्योकि उसने किया था
    मुझपे ऐतबार

    आपकी उक्त पंक्तियों को पढ़कर मुझे किसी का कहा हुआ एक शेर याद आ रहा है:-

    वादा किया था फिर भी न आये मज़ार पर.
    हमने तो जान दे दी इसी ऐतबार पर.

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  10. वाह बेहद भावभीनी प्रस्तुति।

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  11. उसने कहा था और आप इंतजार करती रही . वो जरुर आएगा . क्या खूब उकेरा है मनोभाव को .

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  12. एक कटु यथार्थ की मार्मिक प्रस्तुति।

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  13. मखमली रचना पढ़वाने के लिए शुक्रिया!

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  14. विषयवस्तु के तौर पर बीते लम्हों की कसक औए अभिव्यक्ति के बंधन से पैदा हुई मार्मिकता को कहने का प्रयास करती कविता है ! कुछ कलात्मक प्रकार्य व कसाव और होते तो कविता और जमती ! आपको कुछ महान कवियों ( जिसमें कुछ समकालीन भी होंगे ) की रचनाएं पढनी चाहिए , भावों के अंदाजे-बयां की खातिर !

    'अवधी के अरघान' पर आपकी टिप्पणी के लिए शुक्रिया . टीप भी अवधी में देखकर मन प्रसन्न हो गया . उसी अनुसार आज आपके इस ब्लॉग पर आया . अच्छा लगा . बिन मागे सुझाव देने की बुरी आदत के हिसाब से जो समझ में आया , लिख दिया . आगे की बेहतरी के लिए शुभकामनाएं !!

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  15. आदरणीय अपर्णा जी..
    नमस्कार !
    ........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  16. सुंदर कविता, कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति।

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  17. खुबसूरत रचना, कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति , बधाई

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  18. आपने सुझावों को सकारात्मक तौर पर लिया , इसलिए शुक्रिया . आपके ब्लॉग का अनुसरण कर लिया हूँ , जो समझ में आयेगा आगे भी कहूंगा . आपकी टीप पर यह प्रतिटीप मैंने की अपने ब्लॉग पर की है , वह यहाँ भी रख दे रहा हूँ , शुभकामनाएं !!
    @ पलास
    ईमा 'परम सौभाग्य' कै कवन बाति ! , ई तौ हर टिपैया कै धरमु आय कि पढ़े के बाद 'सै भाठै' के अंदाज मा टीप ना करै . जौन ठीक जनाय तौन कहै . पोस्ट लेखकौ का चाही कि बात का सकारात्मक तौर पै लियय . हमरे बलाग पै कुछ संसोधन - सुधार बतावै का होए तौ बेखटके आपौ कहा जाए . कहा गा है न - 'हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः' . सुक्रिया !

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