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शनिवार, 26 अगस्त 2017

ये कैसा सिलसिला है.......................



क्यो नही रुकता ये सिलसिला
सिलसिला जिसमें चले जाते है सब
धरम की आड में बिना समझे
एक अन्धेरी खोखली गली

सिलसिला जिसमें दिखता है बस
पागल पागलपन और जुनून
बहाने को खून की नदी

सिलसिला जिसमें मिटता है सच
धन बल सत्ता की तलवार पर
सिसकती रह जाती है जिन्दगी

सिलसिला जो कर रहा है संतुष्ट
भूखे वहसी भेडियों की हवस
लूट कर अस्मिता, लाचारी, तिजोरी

सिलसिला जो संकेत है विनाश का
तोड देगी किसी दिन अपना दम
जलती धरती बिलखती मनुजता

सिलसिला कोई तो रोक लो
मनुष्य के दानव बनने का
या बना ही दो, धरा को दानवग्रह

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (28-08-2017) को "कैसा सिलसिला है" (चर्चा अंक 2710) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत ही सुन्दर.... समसामयिक प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय अपर्णा जी ----- समाज में व्याप्त होती अराजकता को बहुत ही संवादंशीलता से उकेरा है |
    सिलसिला कोई तो रोक लो
    मनुष्य के दानव बनने का
    या बना ही दो, धरा को दानवग्रह-----------
    पंक्तियों में मन की वेदना मुखर हुई है | आपको बहु बधाई सार्थक रचना के लिए |सस्नेह हार्दिक शुभकामना --------

    जवाब देंहटाएं
  4. सार्थक,संवेदनशील रचना। अराजकता व विध्वंस के खिलाफ मन की बेचैनी और विद्रोह बह निकला है फूटकर...कोई तो रोक लो ये सिलसिला !

    जवाब देंहटाएं

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