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बुधवार, 21 जुलाई 2010

पागल कौन ?


आज सुबह बस का इन्तजार कर रही थी कि तभी मेरी नजर एक आदमी पर पडी। वो सडक पर पडे कूडे को बीन रहा था। एक छोटा से छोटा कागज का टुकडा उसकी नजर में था। जहाँ तक वो देख सकता था , वो सडक साफ करना चाह रहा था। सडक के किनारे बनी पान की दुकान पर खडे कुछ लोगो के लिये वह मनोरंजन का सामान था। बीच बीच में लोग उसको चिडाने के लिए कभी पान मसाला का खाली पैकेट सडक पर फेंक देते तो कभी केले का छिलका , मगर वो तो अपने काम में इतना तल्लीन था कि बस अपना काम किये ही जा रहा था। तभी एक लडके ने पान थूका और बोला ऐ पागल अब इसे उठा कर दिखा । यह सुनते ही वह हम सबके देखते ही देखते विघुत गति से उसकी तरफ लपका और एक थप्पड उसके गाल पर रख दिया । बस उसके मारने की देर थी कि वहाँ खडे सभी भद्र जनो को अपनी शारीरिक क्षमता दिखाने का मौका मिल गया।
और मै मूक दर्शक बनी सोचती रही कि आखिर पागल कौन ?

5 टिप्‍पणियां:

  1. पागल कौन? ...शायद हम सब !
    -----
    कल 06/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. waah...
    behtareen... sahi maara...
    ham na jane kaam karne mei mast rahnewalo ko pagal kyo kahte hain???
    manushya kee maansikta wakai soch se pare hai...

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  3. आज सब तरफ यही हाल है..सार्थक पोस्ट...

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  4. बेहतरीन सोच को व्यक्त करती लघु कथा ....बहुत अच्छी रचना

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  5. किसी पुरानी फिल्म का गीत है...
    "दुनिया कहती मुझको पागल
    मैं दुनिया को कहता पागल."

    सार्थक/विचारणीय लेखन.
    सादर...

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