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शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

मेरे सच्चे मित्र

ना तुमसे थे
सम्बंध रुधिर के
ना तुमसे रिश्ते
जाति धर्म के
फिर भी तुझमे
मेने पाये
अंश अपनी
आत्मा के
कितनी भी दूर
गये हम तुमसे
सदा ह्रदय के
पास ही पाया
जीवन की
काली रातों में 
इक तूने ही मेरा
साथ निभाया
 मुझे याद है
वो दिन अब भी
जब मैने नौकरी
पायी थी
और भूल के अपनी
असफलता तुमने
मेरे संग दिल से
ढेरो खुशी मनायी थी 
वो सच्चा स्नेह तुम्हारा
याद जब जब आता है
आँखे नम हो जाती हैं
सीना चौडा हो जाता है 
मुझे गर्व कि
मुझको तुमसा
मित्र मिला 
इस जीवन में
मुश्किलों का डर ना
मेरे मन में
जब साथ तेरा 
इस जीवन में 


4 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन की
    काली रातों में
    इक तूने ही मेरा
    साथ निभाया
    मुझे याद है
    वो दिन अब भी
    जब मैने नौकरी
    पायी थी

    सच्चे मित्र यूँ ही साथ निभाते हैं ....
    मुसीबत के वक़्त ही मित्रता की पहचान होती है .....

    सुंदर रचना .....!!

    जवाब देंहटाएं
  2. भावुक कर देने वाली कविता है।
    ----
    कल 04/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. सच्चा मीत अगर मिला, रखें जैसे दरपन
    निश्छल रहे, रखे सदा, जीवन सरस पावन
    सुन्दर रचना.... सादर बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  4. ना तुमसे थे,सम्बंध रुधिर के
    ना तुमसे रिश्ते,जाति धर्म के
    सदा ह्रदय के,पास ही पाया
    जीवन की,काली रातों में....!
    अद्भुत अभिवक्ति....!
    सच्ची मित्रता की पहचान,
    मुश्किल घड़ियों में ही हो....!!

    जवाब देंहटाएं

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