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शनिवार, 5 मार्च 2011

नही जानती क्यों ……………


चंद रोज पहले बना रिश्ता , जन्मों का बन्धन लगता है ।
नही जानती क्यों लेकिन , अपना सा हमको लगता है ।

कभी तो लग जाते है बरसों ,एक रिश्ते को संजोने में
कभी नही लगते दो पल भी , रिश्तों के बिखर जाने में
ऐसे रिश्तों के अनोखे जहाँ में, क्यों तू मेरे साये सा लगता है
नही जानती क्यों ……………………………….

कभी रुधिर के रिश्ते भी, रक्त के प्यासे देखो हो जाते
कभी अजनबी अचानक ही,अपनों से प्यारे बन जाते
प्रतिपल बदलते लोग यहाँ, क्यो तू मेरे बिम्ब सा लगता है
नही जानती क्यों …………………………………….

रिश्तों की अबूझ पहेली को ,मै मूरख समझ नही पाती
रिश्तों की मिलावट देख देख, रिश्तों के बन्धन से घबराती
ऐसी मुश्किल घडियों मे क्यों , तू मेरा साहस बन मुझमें बसता है
नही जानती क्यों ……………………………………………

31 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना ...रिश्ते अबूझ पहेली ही लगते हैं.....

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  2. मौजूदा दौर के हालातों का बेहतरीन चित्रण।
    अच्‍छी रचना।
    शुभकामनाएं आपको।

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  3. रिश्तों की अबूझ पहेली को ,मै मूरख समझ नही पाती
    रिश्तों की मिलावट देख देख, रिश्तों के बन्धन से घबराती


    -रिश्तों के बन्धन तो ऐसे ही होते हैं..उम्दा रचना.

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  4. सम्बन्धों की गहन विवेचना, कभी कभी कितना विचित्र लगता है सब कुछ।

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  5. सुंदर प्रयास है । मुझे कविता की हालांकि ज्यादा समझ नहीं है , किंतु आप शब्दों को और खूबसूरती से पिरोएं तो निखार आएगा । ऊपर कोई चित्र लगाने से थंबनेल आकर्षित करता है पाठकों को । शुभकामनाएं

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  6. बेहतरीन रचना के लिए बधाई ।

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  7. कभी अजनबी अचानक ही,अपनों से प्यारे बन जाते
    रिश्तों के बनते बिगड़ते हालातों को वयां करती आपकी रचना मन को छुने वाली है .....आपका आभार अपर्णा जी
    मुरख ......को मुर्ख इस तरह लिखें

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  8. रिश्तों को लेकर आपने बहुत सुन्दर रचना लिखी है!

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  9. रिश्तों की डोर , और उसमे बांध जाना , जीवन की तमाम अनुभूतियों को रिश्ते की माला में पिरो देना , सच में दुष्कर कार्य है रिश्ते को ईमानदारी से निभा लेना . सुन्दर प्रभावशाली रचना .

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  10. प्रभावशाली रचना
    रिश्ते अबूझ पहेली ही हैं.....

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  11. मौजूदा दौर के हालातों का बेहतरीन चित्रण|धन्यवाद|

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  12. रिश्ते की पड़ताल करती यह रचना रुचिकर लगी।

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  13. रिश्तों के ताने-बाने को
    बहुत प्रभावशाली शब्दों में पिरोया है अपने
    अच्छे ख़यालात
    अच्छी कविता !

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  14. शुक्रिया रचना से गुजरवाने के लिये।

    रिश्ते और बंधन पर यही कहूँगा कि यह खुदा द्वारा खेला जाने वाला धूप-छाँव का खेल सा है, आप बहुत कुछ यांत्रिक नहीं हो सकते। इसलिये संवेदनापरकता के साथ ग्यान जागृति बेहतर रहती है। भरसक भ्रमों से बचाये रखती है।

    आपने शब्द तो जन-सामान्य की समझ में आने वाले चुने हैं, जिसकी मैं सराहना करता हूँ, हाँ लय और सधनी थी। क्योंकि भाव ’लीरिकल’ हों तो लय अहम है।

    @..क्यो तू मेरे बिम्ब सा लगता है
    --- यहाँ ’बिम्ब’ शब्द का औचित्य कम सध रहा। आप भी विचार कीजियेगा।

    आभार !

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  15. वर्तमान हालातों में रिश्तों की बदलती परिभाषा को बड़ी खूबसूरती से रेखांकित किया है आपने अपनी रचना में.

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  16. रिश्तों की मिलावट देख रिश्तों से जी घबराता है , मगर इन रिश्तों में ही कुछ रिश्ते ऐसे भी मिल जाते हैं जो रिश्तों के प्रति विश्वास जागते हैं ...
    सुन्दर प्रस्तुति !

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  17. आपकी रचना सीधे दिल में उतरती महसुस होती है। बहुत ही गहरे एहसास भरे है आपने।

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  18. बहुत सुन्दर कविता..बधाई.

    _______________
    पाखी बनी परी...आसमां की सैर करने चलेंगें क्या !!

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  19. ऐसा क्यों होता है
    पर ऐसा होता है

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  20. कभी रुधिर के रिश्ते भी, रक्त के प्यासे देखो हो जाते
    कभी अजनबी अचानक ही,अपनों से प्यारे बन जाते
    प्रतिपल बदलते लोग यहाँ, क्यो तू मेरे बिम्ब सा लगता है
    नही जानती क्यों …………………………………….

    रिश्तों की अबूझ पहेली को ,मै मूरख समझ नही पाती
    रिश्तों की मिलावट देख देख, रिश्तों के बन्धन से घबराती
    ऐसी मुश्किल घडियों मे क्यों , तू मेरा साहस बन मुझमें बसता है
    नही जानती क्यों

    sunder manbhavan rachna k liye badhai sweekar karein

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  21. बहुत ही सुन्दार प्रभावशाली रचना....

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  22. रिश्तों को जीवित कर दिया है इस रचना के माध्यम से ..

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  23. कभी रुधिर के रिश्ते भी, रक्त के प्यासे देखो हो जाते
    कभी अजनबी अचानक ही,अपनों से प्यारे बन जाते
    प्रतिपल बदलते लोग यहाँ, क्यो तू मेरे बिम्ब सा लगता है
    नही जानती क्यों ………

    बहुत ही सार्थक और भावपूर्ण ...बहुत सशक्त प्रस्तुति..

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  24. सच में मैडम शायद कभी जान भी नहीं पायेगे क्यों????????????

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