अब तो मुस्कराना भी गुनाह सा होने लगा,
कातिल मेरी हसीं को जमाना कहने लगा ।
जो खुली जुल्फ लिये आये महफिल में हम
कोई सावन की घटा कोई जंजीर कहने लगा ।
हौले से ही तो खनकी थी नांदा पायल मेरी,
जिसे देखिये इसे हुस्न की अदा कहने लगा ।
हवा के झोकें ने लहराया जो पीला आंचल,
भंवरा हो जाने को बेताब हर कोई होने लगा ।
ना पूंछा किसी ने हाले दिल पलाश से कभी,
रंग उसके चुरा सिर्फ मन अपना भरने लगा ।
Khoobsurat.
जवाब देंहटाएंसुन्दर ग़ज़ल! साभार! आदरणीया अर्पणा जी!
जवाब देंहटाएंधरती की गोद
badhiya
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (13-01-2015) को अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये..; चर्चा मंच 1857 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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उल्लास और उमंग के पर्व
लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Ko observation gazal.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंसुदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकुछ कह दिया—
जवाब देंहटाएंखूबसूरत सा—
मेरी पायल भी
गजल होने लगी
जो खुली जुल्फ लिये आये महफिल में हम
जवाब देंहटाएंकोई सावन की घटा कोई जंजीर कहने लगा ।
हौले से ही तो खनकी थी नांदा पायल मेरी,
जिसे देखिये इसे हुस्न की अदा कहने लगा ।
बहुत सुन्दर ..