ना सुलझा मेरी उलझन, थोडा बेचैन होने दो,
ये भी रंग इश्क का है, वाकिफ इससे भी होने दो
ना रोको मेरे अश्कों को, जरा बरसात होने दो
ये भी मौसम इश्क का है, वाकिफ इससे भी होने दो
ना बोलो कुछ लबों से आज, इन्हे खामोश रहने दो
ये भी जुबां, इश्क की है, वाकिफ इससे भी होने दो
ना बैठो नजदीक इतने तुम, जरा दूरी सी रहने दो
ये भी इशारे, इश्क के हैं, वाकिफ इससे भी होने दो
ना उठाओ आज पर्दा तुम, फासले ऐसे भी रहने दो
ये भी नजारा, इश्क का है, वाकिफ इससे भी होने दो
ना लेना हाथ, हाथों में, तडप थोडी तो होने दो
ये भी कशिश इश्क में है, वाकिफ इससे भी होने दो
ना आना आज ख्वाबों में, तमाम रात जगने दो
ये भी तजुर्बे, इश्क के हैं, वाकिफ इससे भी होने दो
बहुत सुंदर रचना , बधाई इस अनुपम रचना हेतु
जवाब देंहटाएंhe bhagwaan ..main soch raha hu ki itni uccha koti ki kavita likhne ke liye to mijhe doosra janam leta padega....
जवाब देंहटाएं--------------------kaise likhti hain itni sindaar kavita
wakif hamko bhi karayiye
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर..।।
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