यादों के पन्ने, जब कभी खुल जायेगे
आँखे मुंद जायेगीं, आप नजर आयेगें
कसमें जो दी हैं , उन्हे निभाना है
ख्वाबों में भी, नजदीक नही आयेगें
चाँद देखने का शौक, काफुर हुआ
चांदनी पहरे में, कहाँ तुम्हे पायेंगें
बूंदें बारिश की, अंगारो सी लगे
प्यासे मन, अब ना भींग पायेगें
संग चली गयी, चंद लकीरे भी
हथेलियों में, तेरी छाप सजायेगें
न गुजरेगें उन रस्तों से, जहाँ साथ चले
राहें पूंछेगीं तुम्हे, तो क्या उन्हे बतायेगें
जाते हुये कह तो दिया, ना याद करना
अपने किस्सों में क्या, वो हमे न लायेगें
कोमल भावों से युक्त मर्मस्पर्शी प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-05-2015) को "धूप छाँव का मेल जिन्दगी" {चर्चा अंक - 1978} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
---------------
Behad sundar bhavuk marmsparshi
जवाब देंहटाएंआपकी रचना ह्रदयस्पर्शी है अतः इसे ट्विटर पर शेयर किया गया आशा है कोई आपत्ति न होगी
जवाब देंहटाएंह्रदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें