आज एक लेखिका के रूप में पहली बार अपने जीवन के सच को, मन की भावनाओं को पन्नों पर उतारने का साहस कर रही हूँ। जब भी कलम चली जीवन के खट्टे मीठे अनुभवों को, अपने शब्दों की कूंची से रंग कर गढ दी कभी कोई कविता या कहानी। मगर जब बात माँ की हो तब वहाँ ना किसी अलंकार की जरूरत रह जाती है ना किसी रस की। नही जानती कि मेरे इस लेखन को साहित्य समाज कौन सी विधा में डालेगा।
माँ शब्द जब भी जिव्हा पर आता है, मन में कुछ अलग सा ही अहसास होता है। कुदरत भी जब एक बच्चे को बोलने का हुनर देती है तो सबसे पहला शब्द होता है - म। म अक्षर दुनिया की ना जाने कितनी ही जबानों में माँ पुकारने के लिये प्रयुक्त हुआ। जिसका सीधा सा अर्थ है, माँ सार्वभौमिक है, माँ दिल से निकला शब्द है।
माँ आपसे मुझे ना सिर्फ आप जैसी हू-ब-हू शक्ल मिली बल्कि बहुत सी आदतें और स्वभाव भी पाया है। मै बिल्कुल आप जैसी तो नही बन पायी, मगर कई बार आप जैसा बनने की बचपन में कोशिशे किया करती थी। आपके काम करने के तरीके को कॉपी करती थी। आज जो कुछ भी हम है- वो आपके अथक परिश्रम का ही फल है।
जब घर से पहली बार पढाई के लिये घर से निकली तब आपसे बिछडने के दर्द से ज्यादा घर से बाहर निकलने का उत्साह मन मे था। मगर कुछ ही दिनों में अहसास होने लगा क्या छूट रहा है, तभी तो हर शनिवार खुद-ब- खुद कदम घर की ओर चल पडते थे।
मुझे याद है एक बार जब मैं घर से जा रही थी, आप मेरे लिये पानी की बोतल भर कर लाई और चूंकि बैग पहले से ही खूब भरा था मैने बोतल नही रखी। आपने फिर कहा- बोतल रख लो। मैने कुछ नाराजगी मे कहा आपको तो कुछ समझ आता ही नही। मै भारी बैग अकेले नही उठा सकती। तभी मैने आपको देखा, आपकी आंखों में आंसूं छलक आये थे, तुरन्त ही मुझे मेरी गलती का अहसास हो चुका था। ट्रेन का समय हो रहा था, मगर मेरे कदम उठ नही रहे थे, कैसे आपको दुखी छोड कर जा सकती थी। तब आपने प्यार से मेरा माथा चूमते हुये कहा- अरे बच्चे तो कभी कभी गलती कर ही देते है।, मै नाराज थोडे हूँ, फिर मेरे हाथों में हमेशा की तरह चंद रुपये पकडाते हुये आशीर्वाद दिया।
मै घर से निकल तो आई मगर एक टीस सी रह गयी, कि आपको मैने दुखी किया, मन मे अपराध बोध हो रहा था कि आपकी भावना को मै आपकी बेटी हो कर नही समझ सकी।
आज इस बात को दसों साल हो गये, मगर जब भी अपने बैग में पानी की बोतल रखती हूँ ऐसा लगता है जैसे आप ही पकडाते हुये कह रही हो- छाया पानी की बोतल रख लो। हर बार मुझे मेरी उस दिन की गलती पर पश्चाताप होता है ये जानते हुये भी कि आपने तो मुझे उसी क्षण माफ कर दिया था।
माँ सच में महान है, इस बात से बडा सच कुछ भी नही। आपसे जितनी भी बार हम अपनी गलतियों की माफी मांगे कम ही है फिर भी आप माफी मांगने से पहले ही हमे माफ कर देती हो।
बिल्कुल सही कहा आपने, मां ही जीवन का पर्याय है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ठ कृति का उल्लेख सोमवार की आज की चर्चा, "क्यों गूगल+ पृष्ठ पर दिखे एक ही रचना कई बार (अ-३ / १९७२, चर्चामंच)" पर भी किया गया है. सूचनार्थ.
जवाब देंहटाएं~ अनूषा
http://charchamanch.blogspot.in/2015/05/blog-post.html
सही कहा आपने, माँ की बराबरी कोई नहीं कर सकता!
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