प्रशंसक

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

बच्चे :ना भविष्य बनना हैं ना भगवान


हम अक्सर कहते रहते है कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं मगर आज इस भविष्य का वर्तमान ही ……………………
अपना पेट भरने के लिये , 
कभी झूठे पत्तलों को चाटता हुआ दिखता है
तो कभी किसी की अमीर की , 
जेब काट कर भागता हुआ दिखता है
 कभी अपने कन्धों पर ,
खुद से ज्यादा बोझ ढोता हुआ दिखता है
कभी नन्हे हाथो से ,
सडकों पर सफाई करता हुआ दिखता है
कभी किसी कूडे के ढेर से ,
अनगिनत चीजें बीनता हुआ दिखता है
कभी प्लेटफार्म पर ,
चाय समोसे बेचता हुआ दिखता है

मै अपने देश के हर सभ्य , सुशिक्षित संस्कारी व्यक्ति से यह पूँछना चाहती हूं क्या यही उनके सपनें है। क्या सिर्फ अपने बच्चों को दुनिया की सारी खुशियां दे देने से हमारा दयित्व पूरा हो जाता है ? तब हमे फिर शायद सिर्फ यह कहना चाहिये कि हमारे बच्चे हमारा भविष्य है । क्यों कि शायद जिन बच्चों के माँ बाप नही उनका  तो खुद का ही कोई भविष्य नही होता है ,वो क्या देश का भविष्य बनायेंगें ? ये तो हम सबको सोचना होगा कि कही उनका भविष्य बिगडनें से देश का भविष्य ही ना बिगड जायें ? क्यों कि देश का भविष्य जिन गलियों में बसता है उसके एक किनारे पर ये लाचार और बेबस बच्चे है तो दूसरे पर हमारे आपके समृध बच्चे …..

बच्चे भगवान का रूप होते हैं यह हम सभी अपने मासूम बच्चों को देख कर कहते हैं और भगवान को प्रसन्न करने के लिये तो मन्दिर में फल फूल धन और ना जाने क्या क्या नही चढाते मगर वही मन्दिर के बाहर खडे एक मासूम से मगर गन्दे से बच्चे को कठोर झिठ्की से ज्यादा अगर कुछ देते है तो वो होता है थोडा सा प्रसाद । हे ईश्वर मै आपसे विनती कराती हूँ कि धरती पर सदा मूर्ति रूप में ही विराजमान रहना , तभी आपका भजन पूजन अर्चन वन्दन नित्य होगा , क्योकिं अगर आप एक सामान्य बालक के रूप में मन्दिर की चौखट पर बैठ जायेंगें तब तो शायद कोई आपको सूखी रोटी का भी भोग ना लगाये । क्योंकि धरती के प्राणी तुम्हारी मूर्ति की पूजा को ही सच्ची भक्ति और आराधना मानते हैं।
भारत की ऐसी दशा को देख कर तो यही पंक्तियां याद आती हैं


हाय ! ये कैसी प्रथा देश की कि
पत्थर को भगवान बनाया ।
और उस ईश्वर की अनुपम कृति का ही
 मोल समझ ना पाया ।
बच्चे होते रूप ईश्वर का
ये तो प्रति पल दोहराया ।
पर  मिट्टी की मूरत में ही
सारा ध्यान लगाया । 
काश की सारे अनाथ बच्चे
भी पत्थर बन जाते ।
कभी तो मन्दिर में भगवान बन
थोडा सा भोग तो पा जाते ।



ये नन्हे बेबस बच्चे कहते
बिन गलती की ना हमे सजा दो । 
भविष्य नही भगवान नही
बस हमको भी इंसान बना दो ॥

5 टिप्‍पणियां:

  1. पलाश जी
    नमस्कार !
    बहुत अच्छी पोस्ट है , बधाई !

    बच्चों के प्रति आपकी तरह सभी सोचना शुरू करदें तो समस्या का निदान बहुत आसानी से हो सकता है ।

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  2. दुनिया में 14.6 करोड़ कुपोषित बच्चे हैं। इसका 50% भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में हैं। भारत में 5.7 करोड़ बच्चे कुपोषित हैं।
    आपकी सोच हमें आपको नमन करने को बाध्य करती है। आभार, इस बेहतरी सोच लिए पोस्ट के प्रति! बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
    नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

    दुर्नामी लहरें, को याद करते हैं वर्ल्ड डिजास्टर रिडक्शन डे पर , मनोज कुमार, “मनोज” पर!

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय पलाश जी
    नमस्कार !
    कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. sarvpratham, palash ji, mere blog par aane ke liye dhnyvaad,


    aur aapki baat se 100% sahmat hoon,
    ahut hi achchha mudda, behtar soch ke sath,

    sundar lekh

    जवाब देंहटाएं
  5. "Do the change that you want see in the world"

    I am always with you!!!! Now it's time to give a Shape/Face to "PALASH".
    K.P.

    जवाब देंहटाएं

आपकी राय , आपके विचार अनमोल हैं
और लेखन को सुधारने के लिये आवश्यक

GreenEarth