उदास यूं
बैठ जाने से
कब उदासी
दूर होती है
बुरा कहकर
बुराई को
कब बुराई
दूर होती है………………………..
जलाना बन्द
भी कर तो,
मोमबत्तियां
चौराहों पर
इस
तरह के जुलूसो से
कब बुराई
दूर होती है………………………..
मिलेगा
क्या जलाने से
ये पुतले
रोज चौराहों पर
इस
तरह ही लपटों से
कब बुराई
दूर होती है………………………..
चलो फिर
से करो चर्चा
खोजो आतंक
का मजहब
धरम के
पैबन्द लगाने से
कब बुराई दूर होती है…………………...…..
कब बुराई दूर होती है…………………...…..
करेंगे
कुछ लोग फिर निन्दा
कागजी तलवार चमकेगी
मगर ढुलमुल
इरादों से
कब बुराई
दूर होती है…………………………
लिखने
का हुनर आजमा
शहीद हुये फिर सरहद पर
मगर लाइकों से व्यापारों से
कब बुराई
दूर होती है…………………………
सटीक.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-07-2017) को "विश्व जनसंख्या दिवस..करोगे मुझसे दोस्ती ?" (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चौराहों पर चिल्लाने वाले सीता राम नहीं होते,
जवाब देंहटाएंकरते जिस का विरोध उससे वो भी तो पृथक नहीं होते।
अपने अंदर के तम पर जब तक खुद की चोट नहीं होगी,
तब तक इन पतित समाजों से बुराई दूर नहीं होगी ।
थोड़ा विचार हम सभी को करना होगा।
sundar post abhivyakti
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