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शनिवार, 29 जुलाई 2017

आईना- मेरा दस्तावेज


कल सुबह 
उठा था
कुछ अलसाया अलसाया सा।
प्रतिदिन की तरह
उठ चुकी थी पत्नी
शायद बनाने गयी थी चाय।
तभी नजर गयी
उस आइने पर
जो इस कमरे में
एक अरसे से
सोता जागता था
मेरे साथ।
जिसने देखा था 
खामोशी से
कदम रखते मुझे
जवानी की दहलीज पर,
जिसने भाँपे थे सबसे पहले
मुझमें हो रहे परिवर्तन,
जिसने सिखाया
खुद से नजरें मिलाना,
जिसने जगाया
मेरा सोया आत्मविश्वास,
जिसे भूल गया
वक्त के साथ।
मगर देखता रहा वो
इस उम्मीद पर
देखूंगा मै
एक दिन।
कल एक बारगी
उसे पहचान न सका
कुछ बदल सा गया था
क्योंकि
निकल आयी कुछ झुर्रियां
उसके चेहरे पर
बाल भी हो गये थे
कुछ पके अधपके से
नजरे मिलते ही
कुछ खिंचता सा गया।
ठीक उसी तरह जैसे
अठ्तीस चालीस साल पहले
खिंचा था
माया को देखकर
कितना स्वाभाविक था
वो खिंचाव
उस चुम्बकीय आकर्षण में
गति थी
मेरे जीवन की
शायद तभी
मेरे अंतःकरण में बसा
हनुमान
राम से शिवभक्त बन
करने लगा था तप
पाने को अपनी गौरा।
अचानक मुझे लगा
जैसे उसके सफेद बालों को
किसी ने रंग दिया
गोदरेज हेयर कलर से
किसी ने अदॄश्य रूप से
लगा कर एंटीरिंकल क्रीम
मिटा दी उसकी झुर्रियां
बन गया वो
मुझसा
जाने कैसे उसे देख
मेरे मन के भाव
प्रौढ से युवा हो गये
धुंधली आँखो में चढ गया
गौगल, चश्में की जगह 
कितने ही स्वर्णिम स्वप्न
तैर गये आंखों में
कुछ परेशानियां भी
उभर आयीं
सपनों को साकार करने की।
तभी महसूस हुआ
एक आत्मीय स्पर्श
जो दे रहा था सम्बल
फिर किसी कोने से
गूंजने लगी
कुछ किलकारियां
जो दे रही थी आधार
जीवन को
हाथों में आ रहा था
कोई छोटा सा हाथ।
तभी अनुभव हुआ
समाहित हो रहे हैं
ये सभी मुझमें
जो जगा रहा था
मेरी सुषुप्त चेतना
दे रहा था खाद पानी
निर्जीव हो चले वॄक्ष को
जिसमें शेष थी
आस
उगने की
नयी कोपलें
मिल गया था वापस
मुझे मेरा बीता कल
जो था
ऊर्जा से
अभिसंचित
दे रहा था प्रेरणा
अन्तिम क्षण तक
जीवन युद्ध में
संघर्ष करने की।
और तभी
बरसों से चिर परिचित
ध्वनि आयी
सुनो सुबह हो गयी है
आओ चाय साथ पीते हैं॥
चल दिया मैं
चाय की दिशा में
देकर वचन
अन्तिम श्वांस तक
साथ निभाने का
अपने अजीज दोस्त
अपने आइने को

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन तुलसीदास जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. आइना कभी भी झुठ नही बोलता इसलिए यदि उसे दोस्त बना लिया जाए तो जिंदगी आसान हो जाती हैं। सुंदर प्रस्तुति।

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  3. सुंदर ! उम्र के इस पड़ाव पर सारी बीती बातें याद आती हैं....आईना उन यादों को और गहरा कर देता है...

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  4. तभी महसूस हुआ
    एक आत्मीय स्पर्श
    सार्थक प्रस्तुति.....
    वाह!!!!

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  5. वास्तव में आईना से बड़ा सच्चा मित्र कोई नहीं ।

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  6. शब्दों और भावों का अतुलीय संगम सुंदर रचना अपर्णा जी।

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  7. शब्द-चित्र ने एक अलग समां बांध दिया है..

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