सुनो, मेरे पीछे
लापरवाही मत करना
मुझे पता है तुम
मेरा ख्याल रख सकते हो
मगर खुद का
बिल्कुल भी नही
हाँ आजकल भूलने बहुत लगे हो
याद से आ जाना समय पर
वरना तुम्हारे लिये
फिर सबसे झूठ बोलना पडेगा
और सुनने पडेगें जीजियों से ताने
काम तो बस तुम्हारे ही पति करते है
अरे हाँ एक और बात
रख कर जा रही हूँ
तुम्हारी स्टडी टेबल पर
चंद गुलाबी पन्ने
जिसे अब नही रखते तुम
मेज की दराज में
साथ में रख रही हूँ
कुछ गुलाब की पंखुडियां
कि जानती हूँ तुम्हे अब
कैक्टस का शौक है
अच्छा, ढूँढ सको तो ढूंढ लेना
वो रेनौल्ड का पेन
जिसमें अपने नाम की सिल्प
मैने डाल रखी थी
और एक दिन चुपके से
तुमने निकाल ली थी मेरे बस्ते से
आज चालीस पार फिर से मन
सोलह का हो रहा है
कब से आ चुका है जमाना
ई मेल और व्हाट्स अप का
और मन ले जा रहा है
मुझे पुराने दौर में
मुझे पता है बहुत व्यस्त हो तुम
अपने बिजी सेड्यूल में
फिर भी कर देते हो लाइक
मेरे फेसबुक मैसेज
शाम को जब बना रही होती हूँ चाय
तुम भेज रहे होते हो
मुझे जोक्स या मैसेज
फिर तुम चाय पीते हो
और मै करती हूँ रिप्लाई
सुनो, मै नही कहती
एक दिन में पूरा लिखो
थोडा थोडा सा लिखो
ना भेजो कुछ दिन
मुझे मैसेज
ना करो मुझे लाइक
एफ बी या टिव्टर पर
अच्छा पता याद तो है ना
तुम्हे अपनी ससुराल का
कि अब नही मिलेगी तुम्हे अनीता
जिसके हाथ भेज देते थे
खत में छुपा कर ढेर सारा प्यार
फिर से बन जाओ कुछ दिन के लिये
वही मेरे पुराने चन्दर
कि मै फिर से चाहती हूँ
तकिये के नीचे तुम्हे महसूस करना
चाहती हूँ फिर से
सबसे नजर छुपाकर तुम्हे पढना
कि कबसे नही मिला मुझे
वो मेरा प्रेमी और उसका खत
* चित्र के लिये गूगल का आभार
अक्सर चालीस पार का मन सोलह का हो जाता है !
जवाब देंहटाएंआज भी ऐसे खतों का इंतज़ार रहता है ... बहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर मनोभाव!!
जवाब देंहटाएंThanks for reading, your comment is blessing for me.
हटाएंसुंदर!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअक्सर हम स्त्रियाँ एक जैसा सोचने लगती हैं चालीस के पार....बहुत खूबसूरती व सादगी से बयाँ किए गए मनोभाव ।
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