स्त्री को भी शायद ना पता हो
अपने उभार और ढलान का माप
मगर गिद्ध पुरुष की दॄष्टि
हमेशा नापती रहती है
अंग प्रत्यगं के बीच की दूरी
उसका क्षेत्रफल
और कभी कभी आयतन
कभी चौराहों पर
कभी कार्यस्थल पर
यहाँ तक की मन्दिर भी
आ जाते है चपेट में
ढके मुंदे तन में भी
ढूंढता रहता है
कोई खिडकी
जहाँ से दे सके उडान
अपनी वासना को
अपनी काम कल्पना में
उड कर भी
तॄप्त नही होती
कामाग्नि
चाहता है किसी भी तरह
उसे बुझाना
नही सोचता
क्या गुजरती है
स्त्री के कोमल हदय पर
जब भेदती है उसे
वक्री निगाहें
नही जानता
अपनी सोच मात्र से ही
हो चुका है पतित
और छल चुका है
अपनी अर्धागिंनी को
दिन भर की नाप जोख के बाद
जब बजाता है
घर की डोर बेल
निर्लाज्जता से
ओढ लेता है
थोडा दम्भ
झूठी थकान
झूठ्मूठ का प्यार
और दिखावटी जिम्मेदारी
क्योंकि
दरवाजे के खुलते ही
कोई कर रहा है इन्तजार
बना दिया है जिसने
उसे पति परमेश्वर
सही में.... :(
जवाब देंहटाएंसच्ची बात धारदार तरीके से ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-07-2017) को वहीं विद्वान शंका में, हमेशा मार खाते हैं; चर्चामंच 2677 पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस : मनोज कुमार और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंखूब शब्दों में ढाला अपने मनोभावों को ......बहुत ही सुंदर
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